जिलाधिकारी संजीव सिंह के निर्देश के क्रम में जिला उद्यान अधिकारी ने बताया है कि राजस्थान से मथुरा,आगरा एवं झांसी जनपदों में टिड्डी दलों का प्रवेश हो रहा है जिसका पड़ोसी जनपदों की ओर बढ़ने की संभावना है। ऐसी दशा में सब्जी उत्पादक कृषको को विशेष सावधान किया जाना आवश्यक है।
टिड्डी दलों का परिचय व उनके प्रकोप से सावधानी-
टिड्डी कीट के नाम से अधिकतर लोग परिचित होंगे यह लगभग दो से ढाई इंच लंबा कीट होता है । यह बहुत ही डरपोक होने के कारण समूह में रहते हैं, टिड्डी दल किसानों का सबसे बड़ा शत्रु है। टिड्डियां एक दिन में 100 से 150 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है हालांकि इनके आगे बढ़ने की दिशा हवा की गति पर निर्भर करती है। टिड्डी दल सामूहिक रूप से लाखों की संख्या में झुंड/समूह बनाकर पेड़ पौधों एवं वनस्पतियों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, यह दल 15
से 20 मिनट में आप की फसल के पत्तियां को पूर्ण रूप से खाकर नष्ट कर सकते हैं। यह सभी प्रकार के हरे पत्तों पर आक्रमण करते हैं यह टिड्डी दल किसी क्षेत्र में शाम 6:00 बजे से 8:00 बजे के आस-पास पहुंच कर जमीन पर बैठ जाते हैं टिड्डी दल शाम के समय समूह में पेड़ों झाड़ियों एवं फसलों पर बसेरा करते हैं और वहीं पर रात गुजारते हैं तथा रात भर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं और फिर सुबह 8:00 से 9:00 बजे के करीब उड़ान भरते हैं ।अंडा देने की अवधि में इनका दल एक स्थान पर 3 से 4 दिन तक रुक जाता है। बड़े आकार का टिड्डी दल राजस्थान राज्य से होते हुए मध्य प्रदेश से सटे बुंदेलखंड क्षेत्र की तरफ से उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर चुका है अतः सभी कृषक बंधुओं से अनुरोध है कि इस समय सजग रहें एवं टिड्डी दल की लोकेशन ज्ञात करते रहे टिड्डी दल के आने पर निम्नलिखित उपाय करके आप लोग अपनी फसल को बचा सकते हैं ।
टिड्डी दलों के आक्रमण से बचाव एवं उपाय-*
टिड्डी दल का समूह जब भी आकाश में दिखाई पड़े तो उनको उतरने से रोकने के लिए तुरंत अपने खेत के आसपास मौजूद घास- फूस का उपयोग धुंवा करना चाहिए अथवा आग जलाना चाहिए जिससे टिड्डी दल आपके खेत में न बैठकर आगे निकल जाएगा।
टिड्डी दल दिखाई देते ही ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से आवाज करके उनको अपने खेत पर बैठने ना दें अपने खेतों में पटाखे फोड़ कथा थाली बजाकर , ढोल नगाड़े बजाकर आवाज करें ट्रैक्टर के साइलेंसर को निकाल कर भी तेज ध्वनि कर सकते हैं, कल्टीवेटर या
रोटावेटर चलाकर टिड्डी को तथा उनके अंडों को नष्ट किया जा सकता है। इनको उस क्षेत्र से हटाने भगाने के लिए ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से उपयुक्त होता है। प्रकाश प्रपंच लगाकर एकत्रित करके नष्ट कर सकते हैं क्योंकि एक डरपोक स्वभाव का कीट होता है तेज आवाज से डरकर आपके फसल व पेड़ पौधों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा।
*_रासायनिक नियंत्रण_ -*
यह टिड्डी दल शाम को 6:00 से 7:00 बजे के आसपास जमीन पर बैठ जाता है और फिर सुबह 8:00 से 09:00 बजे के करीब उड़ान भरता है अतः इसी अवधि में इनके ऊपर शक्ति ट्रैक्टर चलित स्प्रेयर की मदद से कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करके इनको मारा जा सकता है । रसायन के छिड़काव का सबसे उपयुक्त समय रात्रि 11:00 बजे से सुबह 8:00 बजे तक होता है।
टिड्डी के नियंत्रण हेतु क्लोरोपाईरीफास 20% ईसी या बेंडियोकार्ब 80% 125 ग्राम 1200 मिली या क्लोरोपाईरीफास 50% ईसी 480 मिली या डेल्टामेथरिन 2.8% ईसी 625 मिली या डेल्टामेथरिन 1.25% एस0सी0 1400 मिली या डायफ्लुबेनजेयूरोन 25% डब्लयूपी 120 ग्राम या लैम्बडा-साईहेलोथ्रिन 10% डब्लयूपी 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक का उपयोग किया जा सकता है।
मैलाथियान 05% धूल अथवा फेनवेलरेट धूल की 25 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डस्टर द्वारा बुरकाव करें। बुरकाव के लिए प्रातः काल का समय अधिक उपयुक्त होता है । क्योंकि इस समय पत्तियों पर ओस पड़ी रहती है जिसके कारण धूल पत्तियों पर चिपक जाती है । बुरकाव को खेत के बाहरी हिस्से से प्रारंभ करते हुए अन्दर की तरफ करना चाहिए।
टिड्डी दलों का परिचय व उनके प्रकोप से सावधानी-
टिड्डी कीट के नाम से अधिकतर लोग परिचित होंगे यह लगभग दो से ढाई इंच लंबा कीट होता है । यह बहुत ही डरपोक होने के कारण समूह में रहते हैं, टिड्डी दल किसानों का सबसे बड़ा शत्रु है। टिड्डियां एक दिन में 100 से 150 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है हालांकि इनके आगे बढ़ने की दिशा हवा की गति पर निर्भर करती है। टिड्डी दल सामूहिक रूप से लाखों की संख्या में झुंड/समूह बनाकर पेड़ पौधों एवं वनस्पतियों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, यह दल 15
से 20 मिनट में आप की फसल के पत्तियां को पूर्ण रूप से खाकर नष्ट कर सकते हैं। यह सभी प्रकार के हरे पत्तों पर आक्रमण करते हैं यह टिड्डी दल किसी क्षेत्र में शाम 6:00 बजे से 8:00 बजे के आस-पास पहुंच कर जमीन पर बैठ जाते हैं टिड्डी दल शाम के समय समूह में पेड़ों झाड़ियों एवं फसलों पर बसेरा करते हैं और वहीं पर रात गुजारते हैं तथा रात भर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं और फिर सुबह 8:00 से 9:00 बजे के करीब उड़ान भरते हैं ।अंडा देने की अवधि में इनका दल एक स्थान पर 3 से 4 दिन तक रुक जाता है। बड़े आकार का टिड्डी दल राजस्थान राज्य से होते हुए मध्य प्रदेश से सटे बुंदेलखंड क्षेत्र की तरफ से उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर चुका है अतः सभी कृषक बंधुओं से अनुरोध है कि इस समय सजग रहें एवं टिड्डी दल की लोकेशन ज्ञात करते रहे टिड्डी दल के आने पर निम्नलिखित उपाय करके आप लोग अपनी फसल को बचा सकते हैं ।
टिड्डी दलों के आक्रमण से बचाव एवं उपाय-*
टिड्डी दल का समूह जब भी आकाश में दिखाई पड़े तो उनको उतरने से रोकने के लिए तुरंत अपने खेत के आसपास मौजूद घास- फूस का उपयोग धुंवा करना चाहिए अथवा आग जलाना चाहिए जिससे टिड्डी दल आपके खेत में न बैठकर आगे निकल जाएगा।
टिड्डी दल दिखाई देते ही ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से आवाज करके उनको अपने खेत पर बैठने ना दें अपने खेतों में पटाखे फोड़ कथा थाली बजाकर , ढोल नगाड़े बजाकर आवाज करें ट्रैक्टर के साइलेंसर को निकाल कर भी तेज ध्वनि कर सकते हैं, कल्टीवेटर या
रोटावेटर चलाकर टिड्डी को तथा उनके अंडों को नष्ट किया जा सकता है। इनको उस क्षेत्र से हटाने भगाने के लिए ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से उपयुक्त होता है। प्रकाश प्रपंच लगाकर एकत्रित करके नष्ट कर सकते हैं क्योंकि एक डरपोक स्वभाव का कीट होता है तेज आवाज से डरकर आपके फसल व पेड़ पौधों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा।
*_रासायनिक नियंत्रण_ -*
यह टिड्डी दल शाम को 6:00 से 7:00 बजे के आसपास जमीन पर बैठ जाता है और फिर सुबह 8:00 से 09:00 बजे के करीब उड़ान भरता है अतः इसी अवधि में इनके ऊपर शक्ति ट्रैक्टर चलित स्प्रेयर की मदद से कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करके इनको मारा जा सकता है । रसायन के छिड़काव का सबसे उपयुक्त समय रात्रि 11:00 बजे से सुबह 8:00 बजे तक होता है।
टिड्डी के नियंत्रण हेतु क्लोरोपाईरीफास 20% ईसी या बेंडियोकार्ब 80% 125 ग्राम 1200 मिली या क्लोरोपाईरीफास 50% ईसी 480 मिली या डेल्टामेथरिन 2.8% ईसी 625 मिली या डेल्टामेथरिन 1.25% एस0सी0 1400 मिली या डायफ्लुबेनजेयूरोन 25% डब्लयूपी 120 ग्राम या लैम्बडा-साईहेलोथ्रिन 10% डब्लयूपी 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर कीटनाशक का उपयोग किया जा सकता है।
मैलाथियान 05% धूल अथवा फेनवेलरेट धूल की 25 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डस्टर द्वारा बुरकाव करें। बुरकाव के लिए प्रातः काल का समय अधिक उपयुक्त होता है । क्योंकि इस समय पत्तियों पर ओस पड़ी रहती है जिसके कारण धूल पत्तियों पर चिपक जाती है । बुरकाव को खेत के बाहरी हिस्से से प्रारंभ करते हुए अन्दर की तरफ करना चाहिए।
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