किसी के जीवन में, किसी आपातकाल में, किसी विषम परिस्थिति में आप अपनी जिम्मेदारी किस रूप में निभाते हैं

एक जिम्मेदार की नाते, एक मददगार के नाते, एक होशियार के नाते, या फिर समस्या के निस्तारण कर्ता के नाते, या फिर इसकी बजाय समस्या बढ़ाने वाले के नाते, समस्या फैलाने वाले के नाते, या स्वार्थी बनने के नाते।

इतिहास आपको किस लिए याद रखेगा यह बहुत महत्वपूर्ण है, संकट की इस घड़ी में इतिहास रचा जा रहा है, इस वक्त जो कोई भी जिस भी तरीके का कार्य कर रहा है, उसे भविष्य और इतिहास दोनों देख रहे हैं।
वैसे भी इतिहास आपको आपके मूल्यों की तराजू पर तोलता है, आपके मूल्य यानी स्टैंडर्ड्स किस प्रकार के हैं और इस वक्त प्रकृति की रक्षा करने या उसे नुकसान पहुंचाने में आप कितना महत्वपूर्ण योगदान अदा करते हैं, इसे प्रकृति कभी नहीं भूलेगी।

प्रकृति हमसे स्वतः ही नाराज है, ऐसा दिखाई भी दे रहा है, सुनाई भी, और समझा भी जा सकता है।

इस वक्त प्रकृति के प्रति एक भी गलती एक भी खिलवाड़ हमारे लिए महा भयानक साबित हो सकता है।

इसलिए अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाए अपने कर्तव्यों का ध्यान रखें अपने धर्म का पालन करें और राष्ट्र निर्माण में अपनी भागीदारी अदा करें।

मित्रों विश्व कुछ नहीं होता बस कुछ देशों के संगठन को ही विश्व कहा जाता है, उसी प्रकार देश कुछ नहीं होता कुछ घरों के संगठन को ही देश कहा जाता है।

जमाने की परवाह करना ठीक है, लेकिन हर आदमी का जमाना उसके अपने घर से शुरू होता है, इसलिए आप अपने घर की परवाह कीजिए।

एक बटा सवा सौ करोड़ आप हैं, एक बटा सवा सौ करोड़ मैं हूं, इसी प्रकार से हम अगर इसी रेशों में अपनी भागीदारी निभाते रहे, तो यह चुनौती हम आसानी से जीत लेंगे।
एक एक व्यक्ति से एक एक घर और एक एक घर से जब देश बचेगा तो आपकी जिम्मेदारी भी पूरी हो जाएगी और विश्व की रक्षा भी हो जाएगी।

आओ मिलकर अपनी भागीदारी निभाएं।

जब तक बहुत जरूरी ना पड़े, तब तक अपने घर की सीमा रेखा ना लांघें, मित्रों आप भी जानते हैं हमारे जीवन में हमने हमारे इंटरनल कंट्रोल्स को इतना कमजोर कर दिया है कि हम छोटी सी चीज को बुनियादी चीज समझ कर निकल पड़ते हैं उसे खरीदने के लिए, मैंने

देखा है कुछ बच्चे जिन को समझ नहीं है कि कोरोना क्या है महामारी क्या होती है, मैं जिद्दी बच्चे पढ़े हुए हैं उन्हें चॉकलेट भी चाहिए वह दुकानों पर ढूंढ रहे हैं, कृपया उन्हें भी समझाएं और स्वयं को भी, जब तक बहुत ही महा भयानक जरूरत ना हो तब तक घर से ना निकले।

छोटी-मोटी चीजों को अपने जीवन से बाहर निकाल दें, सुना है 21 दिनों में आदतों को भी बदला जा सकता है, रोजमर्रा के जीवन में हमें इतना वक्त नहीं मिलता, आप से गुजारिश है कि इस समय को आत्म चिंतन और मंथन का समय समझ कर कुछ इस प्रकार की

गतिविधियां भी करें जिससे अपने जीवन को सुधारा जा सकता है, क्योंकि अगर आपका व्यक्तिगत जीवन सुधरेगा तो उससे आपका परिवार का भविष्य बदलेगा, परिवार का भविष्य बदलते हुए एक देश का भविष्य बदल देगा, इसके लिए आपका भी तरीके की चीजें कर सकते हैं, काफी नई चीजें सीख सकते हैं।

मित्रों, सन 1665 में लंदन में प्लेग आया था, अगर आप इस पर रिसर्च करेंगे तो आप पाएंगे कि इसे द ग्रेट प्लेस ऑफ लंदन कहा गया। इसी प्रकार की इमरजेंसी लगी, लॉक डाउंस हुए और लोग अपने घरों में कैद हो गए सेल्फ आइसोलेशन में चले गए।

दोस्तों बुराई के साथ कुछ अच्छाइयां भी जन्म लेती हैं, उस वक्त न्यूटन अपनी पढ़ाई कर रहे थे और वह अपनी कॉलेज की शिक्षा और स्कूल शिक्षा के विरोध में थे, उनको मानना था कि वह शिक्षा की बातें प्रैक्टिकल नहीं है कि किसी काम की नहीं है, कुछ हटकर शिक्षा और विद्या हासिल की जाए लेकिन वैसा कर नहीं पा रहे थे समय के अभाव में।

इसी सेल्फ आइसोलेशन के समय पर वह अपने बगीचे में लेटे हुए थे और उन्होंने एक सेब को ऊपर से नीचे गिरते हुए देखा।

*मित्रों जो काम रहे अपनी रोजमर्रा के जीवन में नहीं कर पा रहे थे उसी समय पर उन्होंने समय निकाल लिया और इस वक्त ने उन्हें इतना वक्त जरूर दिया कि उन्होंने वैश्विक सिद्धांत द लॉ ऑफ ग्रेविटी यानी गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की।*

जो चल रहा है वह बुरा तो है लेकिन सबसे बुरा नहीं है। सबसे बुरा वह होता है जब आपके सपने मर जाते हैं, सबसे बुरा वह समय होता है जब आपकी ख्वाहिशें खत्म हो जाती हैं। आपकी इच्छा शक्ति खत्म हो जाती है।

ईश्वर की कृपा से अभी वह समय नहीं आया है।
स्वामी विवेकानंद से उनके किसी शिष्य ने पूछा, गुरुदेव मेरा सब कुछ खत्म हो गया मैं बर्बाद हो गया जीवन में इससे बुरा जीवन भी आपने कहीं देखा है?
विवेकानंद मुस्कुराए और बोले कि आपको ऐसा लगता है कि मेरा जीवन सबसे बेकार है?
शिष्य घबराकर बोला, क्षमा करें गुरुवर मेरा यह आशय नहीं था आपने ऐसा क्यों सोचा?
स्वामी मुस्कुराए और बोले कि मेरा जीवन भी तो कुछ इसी प्रकार का है, मैंने तो सब कुछ त्याग दिया है मुझसे तो सब कुछ छिन चुका है। तो आपके हिसाब से मेरा जीवन सबसे बेकार होना चाहिए।

शिक्षा क्षमा प्रार्थना करने लगा, इस पर स्वामी मुस्कुराए और बोले वत्स इतना परेशान होने की जरूरत नहीं।
 *जीवन से सब कुछ खो जाना बुरा तो है लेकिन सबसे बुरा नहीं है, सबसे बुरा तो यह विचारधारा है कि मेरा जीवन सबसे बुरा है। सबसे बुरा तो उस मनोबल का खो देना होता है जिसके बल पर यह सब कुछ पुनः प्राप्त किया जा सकता है।*

मैं आपसे कुछ नहीं कहना चाहता मैं आपके जितना ज्ञान और सिद्धांत समझता भी नहीं हूं।

लेकिन आप सिर्फ यह अनुरोध है कि अपने व्यक्तिगत धर्म का पूर्ण रुप से पालन करें और अपना और अपनों का ख्याल रखें।

आपसे फिर मुलाकात होगी कुछ अच्छी खबरों के साथ। तब तक अपना ख्याल रखें सुरक्षित रहें।

जय हिंद
*Adv. Parth Chaturvedi*
प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

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