महिला और पुरुष के बिना देश की तरक्की असंभव- पारुल जैन

                               भीलवाड़ा, राजस्थान (भैरू सिंह राठौड़) आज हम महिला दिवस मना रहे है। जगह जगह छोटे बड़े आयोजन हो रहे है जिसमें हम महिलाओं की आज़ादी की बात कर रहे है। साथ ही स्त्री शक्ति को सलाम भी कर रहे है। निश्चित रूप से पिछले सौ

सालों में स्त्री की स्थिति में भारी बदलाव आया है. वह बंधन तोड़ कर आज़ादी की सांस ले रही है। यह कहना है दिल्ली की मशहूर स्वतंत्र पत्रकार पारुल जैन का। पारुल जैन ने इस संवाददाता भैरू सिंह

राठौड़ को बताया कि आज के जमाने में नारी पुरुष के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चल रही है। बल्कि कुछ मामलों में तो पुरुषों से भी आगे है। पुरुषों के वर्चस्व वाले ऐसे कितने ही क्षेत्र है जहां अब स्त्रियाँ

 अपनी उपस्थिति दर्शा रही है। फिर चाहे वह बार ट्रेंडिंग का काम हो या ऑटो चलने का। आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जहाँ स्त्री ने अपना परचम न लहराया हो, चाहे सत्ता हो, व्यापर हो या बैंकिंग, स्त्री

 सभी जगह ऊँचे पदों पर आसीन है। पारुल यह भी कहती हैं कि महिला सशक्तिकरण ना तो स्त्री को देवी बनाने से आएगा और ना ही एसी कमरों में बैठकर महिलाओं के उपर लंबे चौड़े भाषणों के

सेमीनार से आएगा। आज का बाजार भी महिला दिवस पर अन्य चीजों की प्रर्दशनी लगाकर महिलाओं को महज़ दिखाने की वस्तु बता रहा है। इसलिए महिलाओं को शसक्त बनाने के लिए पहले लड़कीयों

 में आत्मविश्वास जगाकर और सकारात्मक सोच वाले पुरुषों के साथ दोस्ती करके उन्हें साथ लेकर भविष्य की किताब के पन्नो पर उज्जवलता का मजबूत संदेश लिखना होगा। और इस काम की

शुरुआत सभी वर्गों को अपने घरों से ही करनी होगी तभी सही मायनों में महिलाओं की सुरक्षा और स्थिति मजबूत होगी।
हम कहते है कि अब स्त्री आज़ाद है, पर क्या कभी हमने सोचा है कि

 स्त्री किसकी दास्ताँ से मुक्त हुई है? क्या पुरुष की? शायद ये सच भी हो। पर एक सच यह भी है कि अगर आज वह आगे बढ़ रही है तो उसमे पुरुष का भी हाथ है। पुरुष की मदद से ही स्त्री सफलता के

नित नए सोपान छू रही है। वह मददगार पुरुष किसी भी रूप में हो सकता है। पिता, पति,भाई, बेटा, दोस्त, रिश्तेदार, यहाँ तक कि बॉस या कलीग भी.

कई बार स्त्री पुरुष दोनों को ही लगता है कि हमें एक दूसरे की जरूरत नहीं। जबकि ऐसा नहीं है होता है स्त्री पुरुष दोनों ही एक दूसरे के पूरक है। दोनों का ही एक दूसरे के बिना कोई वजूद नहीं है, न तो अकेली स्त्री कुछ कर सकती है और न ही अकेला पुरुष।

 इसलिए आज ज़रूरत इस बात की नहीं कि स्त्री को महान और पुरुष को उसके आगे बौना साबित करने की कोशिश की जाए बल्कि ज़रूरत इस बात की है कि भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनाया जाये जहां स्त्री पुरुष दोनों ही समान हो और दोनों को ही समान अधिकार प्राप्त हो जिससे दोनों ही देश की तरक्की में समान योगदान दे सकें।   

                                                                                    *रिपोर्ट - भैरू सिंह राठौड़ भीलवाड़ा (राजस्थान) 09799988158*

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