तनदियों को संरक्षित करने के लिए जन-जागरुकता फैलाने हेतु सभी गंगा के किनारे एकत्रित हुए। विगत वर्ष "छोटी नदी बचाओ अभियान" के प्रणेता ब्रिजेन्द्र प्रताप सिंह के मार्गदर्शन में सभी ने गंगा के तट पर यह शपथ ली थी कि सभी अपना वैलेंटाइन डे नदियों के साथ हरेक वर्ष मनाएंगे।
इस वर्ष सभी इसी आशय के साथ एकजुट हुए कि जनजागरूकता के द्वारा ही छोटी नदियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। "छोटी नदियों की जंग में हम सब संग में" और "रिवर माई वैलेंटाइन" के नारे के बीच संयोजक ब्रिजेन्द्र प्रताप सिंह ने सभी को छोटी नदियों के संरक्षण हेतु शपथ दिलाई।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग में वरिष्ठ सहायक आचार्य डॉ राहुल पटेल ने पुलवामा के अमर शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की और सभी को शहीदों और भारत की सेना से प्रेरणा लेने की अपील की। उन्होंने कहा कि देश के सैनिक हमारे देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हैं तो हम सब उनसे प्रेरित होकर इतना तो कर सकते हैं कि छोटी नदियों को बचाने के लिए अपने आसपास के लोगों और समाज को जागरूक करें। नदियाँ जीवनदायी बनी रहें इसके लिए जरूरी है
कि हम उनके अस्तित्व के लिए जो भी चुनौतियां हैं उनको जड़ से खत्म करने का भरसक प्रयास करें। उन्होंने मध्यप्रदेश के पातालकोट क्षेत्र की तीन छोटी नदियों यथा दुद्धी, सीतारेवा और गाइनी नदी को संरक्षित रखने हेतु भारिया और गोंड आदिम जनजातियों के देशज तरीकों की भी चर्चा की और उनसे सीख लेने की पैरवी की। मोनिका आर्या, स्टैंडिंग कॉउन्सिल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश सरकार,ने कानपुर की पाण्डु नदी को जीवंत करने हेतु किये गए अपने प्रयासों से लोगों को जागरूक किया।
उन्होंने कहा कि निरंतर प्रयास से और नदियों की सेवा और दृढ़ निश्चय से ही हम इस कार्य को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं। मानवविज्ञान विभाग के शोध छात्र विनय कुमार यादव और प्रभाकर सिंह ने नदियों के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डाला। इसी विभाग के अविनाश आनंद ने छोटी नदियों को बचाने हेतु कहा कि हम डॉक्यूमेंट्री बनाकर उसके माध्यम से समाज को जागरूक कर सकते हैं।
ओ डी एफ छिवकी से रिटायर्ड अधिकारी दिनेश कुमार सिन्हा, मत्स्य विभाग के फील्ड सहायक अमित रंजन पाण्डे, युवा समाज सेवी सुशील पटेल मोनू, जितेंद्र सिंह, विपिन सिंह, संत दिनेश मणि, नीरज जैन, महोबा के कश्यप कुमार मौर्य, ओड़िसा के प्रणव कुमार महालिक आदि ने भी सक्रिय सहभाग किया।
इस वर्ष सभी इसी आशय के साथ एकजुट हुए कि जनजागरूकता के द्वारा ही छोटी नदियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। "छोटी नदियों की जंग में हम सब संग में" और "रिवर माई वैलेंटाइन" के नारे के बीच संयोजक ब्रिजेन्द्र प्रताप सिंह ने सभी को छोटी नदियों के संरक्षण हेतु शपथ दिलाई।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग में वरिष्ठ सहायक आचार्य डॉ राहुल पटेल ने पुलवामा के अमर शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की और सभी को शहीदों और भारत की सेना से प्रेरणा लेने की अपील की। उन्होंने कहा कि देश के सैनिक हमारे देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हैं तो हम सब उनसे प्रेरित होकर इतना तो कर सकते हैं कि छोटी नदियों को बचाने के लिए अपने आसपास के लोगों और समाज को जागरूक करें। नदियाँ जीवनदायी बनी रहें इसके लिए जरूरी है
कि हम उनके अस्तित्व के लिए जो भी चुनौतियां हैं उनको जड़ से खत्म करने का भरसक प्रयास करें। उन्होंने मध्यप्रदेश के पातालकोट क्षेत्र की तीन छोटी नदियों यथा दुद्धी, सीतारेवा और गाइनी नदी को संरक्षित रखने हेतु भारिया और गोंड आदिम जनजातियों के देशज तरीकों की भी चर्चा की और उनसे सीख लेने की पैरवी की। मोनिका आर्या, स्टैंडिंग कॉउन्सिल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश सरकार,ने कानपुर की पाण्डु नदी को जीवंत करने हेतु किये गए अपने प्रयासों से लोगों को जागरूक किया।
उन्होंने कहा कि निरंतर प्रयास से और नदियों की सेवा और दृढ़ निश्चय से ही हम इस कार्य को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं। मानवविज्ञान विभाग के शोध छात्र विनय कुमार यादव और प्रभाकर सिंह ने नदियों के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डाला। इसी विभाग के अविनाश आनंद ने छोटी नदियों को बचाने हेतु कहा कि हम डॉक्यूमेंट्री बनाकर उसके माध्यम से समाज को जागरूक कर सकते हैं।
ओ डी एफ छिवकी से रिटायर्ड अधिकारी दिनेश कुमार सिन्हा, मत्स्य विभाग के फील्ड सहायक अमित रंजन पाण्डे, युवा समाज सेवी सुशील पटेल मोनू, जितेंद्र सिंह, विपिन सिंह, संत दिनेश मणि, नीरज जैन, महोबा के कश्यप कुमार मौर्य, ओड़िसा के प्रणव कुमार महालिक आदि ने भी सक्रिय सहभाग किया।
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