जिस देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर गए और बदले में देश ने क्या दिया घुट घुट मौत, महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त : बी एस बेदी


 आज देश में क्रांतिकारियों की फोटो पर माला चढ़ाने और फोटो खिंचवाने तक सीमा के दायरे तक ही सीमित कर दिया गया है अगर इनके बलिदान और इनके विचारों पर चल अमल किया जाए तो आज के नेताओं की राजनीत रोटियां नहीं सीखेंगे  इस देश के लिए हमारे क्रांतिकारी वीरों ने क्या क्या तकलीफ है नहीं सही हर बला और मुसीबत को खुशी से झेला और धरती मां और मां के बच्चों को आंच  तक नहीं आने दी  और उस आग को अपने लहू से बुझाया । आजादी के बाद महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त इसे दुर्भाग्य कहें यह सौभाग्य कहे सारे साथियों में केवल वो जीवित बचे  भगत सिंह और राजगुरु सुखदेव आजाद का नाम आता है वही उन्हीं में से एक महान
क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का भी नाम बड़े सम्मान के साथ साथ लिया जाता है  बटुकेश्वर दत्त ने कभी सोचा नहीं होगा इस देश को हमने अपने लहू से सींचकर आजाद कराया   उसी देश में मुझे  अपना पेट पालने के लिए मजबूर होना पड़ेगा    बटुकेश्वर  दत्त ने आजादी के बाद उन्हें अपनी जीविका चलाने के लिए क्या-क्या करना नहीं पड़ा उन्हें सिगरेट बेचनी पड़ी एक कंपनी में नौकरी की उसके बाद अपना कारखाना खोला नुकसान होने के कारण बंद करना पड़ा कुछ समय  एक बार पटना मैं बसों के परमिट मिल रहे थे  जब दत्त को पता चला तो वह। भी अपना परमिट के लिए   आवेदन किया  और जब वो पटना कमिश्नर ऑफिस में गए तो कमिश्नर ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांगा यह बातें सुनकर दत्त को बड़ा धक्का सा लगा  और जब यह बातें अखबार में प्रकाशित हुई तो राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को जब पता चला
तो उनकी ओर से कार्रवाई की गई ऑफिसर पर  के बाद कमिश्नर को दत्त से माफी मांगने पड़ी  इतने बड़े क्रांतिकारी को इस देश में दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी  इतने मजबूर हो गए और अपने शरीर से बेबस हो गए  एक सरकारी अस्पताल में गुमनाम की तरह भर्ती करा दिया गया इस दुर्दशा की दास्तां एक अखबार में प्रकाशित हुई जब जाकर सोई  हुई सरकार जागी बटुकेश्वर दत्त को  एहसास रहा होगा काश मैं भी अपने साथियों के साथ फांसी पर चढ़ जाता तो अच्छा था कम से कम यह दिन तो ना देखना पड़ता आजाद भारत में   यू घुट घुट कर मरने से तो अच्छा था अपने वीरों के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़कर वीरता की मौत मरता  तो मैं 
 अद्भुत आनंद के महासागर में डूब जाता  सरदार भगत सिंह के साथ केश्वर दत्त ने बहरी गोरी सरकार को सुनाने के लिए असेंबली में बम फेंका  और भारत की आजादी का संकेत दिया दोनों वीरों ने बड़ी बहादुरी से परिचय देते हुए गिरफ्तारी दी   सरदार भगत सिंह पर कई संगीत धाराएं लगाकर केस लगाए गए और बटुकेश्वर दत्त पर भी असेंबली में बम फेंकने का केस लगाया गया और अंत में अदालत ने हुकुम दिया सरदार भगत सिंह को सजा-ए-मौत यानी फांसी बटुकेश्वर दत्त को काला पानी की सजा उम्र कैद सुनाई   और उन्हें अंडमान निकोबार जेल में भेज दिया गया  कुछ दिनों बाद दत्त को जेल में टीवी हो गई   मरते-मरते बचे दत्त को जब अपने प्यारे साथियों के बारे में पता चला  कि सरदार भगत सिंह , राजगुरु, सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई है तो वह है टूट उम्र के अंत के पड़ाव में 50 के दशक में कुछ समय के लिए उन्हें विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कर दिया गया राजनीति की चकाचौंध से कोसों मील दूर थे स्वास्थ्य खराब होने लगा 1964 में उनकी ज्यादा खराब हो गई बीमारी की वजह से फिर उन्हें पटना के एक सरकारी अस्पताल में आज के लिए भर्ती कराया गया 


अगर इनकी जगह पर नेहरू-गांधी होते तो  एम्स में भर्ती कराया जाता   उनकी यह हालत देख उनके परम मित्र चमनलाल आजाद लिखा था दत्त जैसे महान क्रांतिकारी भारत में जन्म लेना चाहिए परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी गलती की है बड़े दुख और शर्म की बात है जिस व्यक्ति ने इस देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ बहा दिया और आज देश ने उसे अपने हालात पर छोड़ दिया    उसे कोई पूछने वाला नहीं है   जब तक शर्म सरकार को आई और जागी उस वक्त  समय काफी  दूर निकल चुका था भारत के शूरवीर की हालत ज्यादा बिगड़ चुकी थी  22 नवंबर 1964 दिल्ली एम्स में भर्ती कराया दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों को बताया मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था जिस दिल्ली में मैंने कभी  देश की आजादी के लिए असेंबली मैं बम फेंका था वहां एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचलर पर लादकर   हॉस्पिटल आया जाऊंगा डॉक्टरों ने जांच में उन्हें कैंसर बताया उम्र के आखिरी पड़ाव में अपने साथी मित्र क्रांतिकारियों को पुकारा करते थे  भगत सिंह राजगुरु सुखदेव चंद्र शेखर आजाद अनेक अन्य साथियों  को याद करते रहते थे जब दत्त की हालत के बारे में सरदार भगत सिंह जी की मां  विद्यावती जीको पता चला तो वह अपने बेटे के परम मित्र बटुकेश्वर दत्त का हाल लेने हॉस्पिटल एम्स पहुंचे  तब बटुकेश्वर दत्त ने अपनी इच्छा बताते हुए उनसे कहा  मां जी मेरा दाह संस्कार भी मेरे मित्र सरदार भगत समाधि के बगल में किया जाए 20 जुलाई 1965 को रात 1:50 मिनट पर भारत के इस महान सपूत ने दुनिया को अलविदा कर दिया 
 इस सारे कथन से ऐसा प्रतीत होता है इतना दुख तो शायद अंग्रेजों के राज में भी हमारे क्रांतिकारियों ने नहीं झेला जितना आजाद भारत में उन्हें प्रताड़ित किया गया इस देश के नेताओं और आज के समाज का जमीर मर चुका है जिन्होंने ऐसे महान वीरों को भुला दिया  आज क्रांतिकारियों का शरीर तो नहीं है मगर उनके शब्द है  जिन्हें कभी नहीं मारा जा सकता 
ए जमाने तू लाख कोशिशें कर ले  , क्रांतिकारियों को भुलाने की   वो मर कर भी जिंदा है, वो कल भी  जिंदा थे  वो आज भी जिंदा है  , सत्ता की खातिर तुम उनको भूल गए , जो कुरबानी देकर अपनी सब कुछ तुम को दे गए , तुम स्वार्थ के लालच में वीरों को भूल गए 
कोटि कोटि नमन उन महान क्रांतिकारियों को  जो अपनी कुर्बानी देकर देश के स्वार्थी  नेताओं को  आज़ादी देकर  सत्ता दे गए 
इन्कलाब जिंदाबाद , जय हिन्द जय भारत
बी एस बेदी  संस्था आप और हम राष्ट्रीय भ्रष्टाचार अपराध मुक्ति संगठन

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