दशरथ मांझी शाहजहाँ से भी बड़ा काम किए मांझी साहब ने एक आदमी, खुद मजदुर और 22 साल दोनों ताजमहल और पहाड़ से रास्ता बीबी से प्यार से प्रेरित होकर बना ।।। दशरथ माँझी माउंटेन मैन ।।।।
Dashrath Manjhi
दशरथ माँझी
जन्म
दशरथ
14 जनवरी 1929
गहलौर, बिहार, भारत
मृत्यु
17 अगस्त 2007
नयी दिल्ली, भारत
मृत्यु का कारण
पित्ताशय कैंसर
राष्ट्रीयता
भारतीय
अन्य नाम
माउंटेन मैन
व्यवसाय
मज़दूरी
जीवनसाथी
फाल्गुनी देवी
दशरथ मांझी (जन्म: 14 जनवरी 1929 – 17 अगस्त 2007 जिन्हें "माउंटेन मैन"के रूप में भी जाना जाता है बिहार में गया के करीब गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे।[4] केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली 22 वर्षों परिश्रम के बाद, दशरथ के बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 किमी से 15 किलोमीटर कर दिया
...अपने बुलंद हौसलों और खुद को जो कुछ आता था, उसी के दम पर मैं मेहनत करता रहा. संघर्ष के दिनों में मेरी मां कहा करती थीं कि 12 साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं. उनका यही मंत्र था कि अपनी धुन में लगे रहो. बस, मैंने भी यही मंत्र जीवन में बांध रखा था कि अपना काम करते रहो, चीजें मिलें, न मिलें इसकी परवाह मत करो. हर रात के बाद दिन तो आता ही है.
दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे और दलित जाति के थे। शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा। वे जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी। ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की। दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी। यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकलेगा और अत्री व वजी़रगंज की दूरी को कम करेगा।
इन्होंने अपने काम को 22 वर्षों(1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया। माँझी का प्रयास का मज़ाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने गहलौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया। हालांकि इन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है और इन्होंने इस पहाड़ के पत्थर भी बेचे फिर भी इनका ये प्रयास सराहनीय है। बाद में माँझी ने कहा," पहले-पहले गाँव वालों ने मुझपर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दे कर और औज़ार खरीदने में मेरी मदद कर सहायता भी की।
Dashrath Manjhi
दशरथ माँझी
जन्म
दशरथ
14 जनवरी 1929
गहलौर, बिहार, भारत
मृत्यु
17 अगस्त 2007
नयी दिल्ली, भारत
मृत्यु का कारण
पित्ताशय कैंसर
राष्ट्रीयता
भारतीय
अन्य नाम
माउंटेन मैन
व्यवसाय
मज़दूरी
प्रसिद्धि कारण
वह अकेले पहाड़ को काटकर सड़क का निर्माण किया। पर्वत पुरूष दशरथ माँझी को 22 वर्षों तक नि:शुल्क छेनी-हथौड़ा पहाड़ तोड़ने के लिए हैमर मैन शिवू मिस्त्री ने प्रदान किये। उन्हीं के दिए छेनी-हथौड़े से दशरथ माँझी ने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया। दशरथ के कार्य में जान फूँकी थी, श्री मिस्त्री का अहम योगदान।जीवनसाथी
फाल्गुनी देवी
दशरथ मांझी (जन्म: 14 जनवरी 1929 – 17 अगस्त 2007 जिन्हें "माउंटेन मैन"के रूप में भी जाना जाता है बिहार में गया के करीब गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे।[4] केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली 22 वर्षों परिश्रम के बाद, दशरथ के बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 किमी से 15 किलोमीटर कर दिया
...अपने बुलंद हौसलों और खुद को जो कुछ आता था, उसी के दम पर मैं मेहनत करता रहा. संघर्ष के दिनों में मेरी मां कहा करती थीं कि 12 साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं. उनका यही मंत्र था कि अपनी धुन में लगे रहो. बस, मैंने भी यही मंत्र जीवन में बांध रखा था कि अपना काम करते रहो, चीजें मिलें, न मिलें इसकी परवाह मत करो. हर रात के बाद दिन तो आता ही है.
*दशरथ मांझी का वक्तव्य* :-
फिल्म: 'मांझी: द माउंटेन मैन में'दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे और दलित जाति के थे। शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा। वे जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी। ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की। दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी। यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकलेगा और अत्री व वजी़रगंज की दूरी को कम करेगा।
*उपलब्धि :-*
दशरथ माँझी काफी कम उम्र ने अपने घर से भाग गए और धनबाद की कोयले की खानों में काम किया। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद ये अपने घर लौटे और 360-फुट-लम्बा (110 मी॰), 25-फुट-गहरा (7.6 मी॰) 30-फुट-चौड़ा (9.1 मी॰)गेहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाने का फैसला किया ]इन्होंने बताया, "जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इसने मेरे निश्चय को और मजबूत किया।"इन्होंने अपने काम को 22 वर्षों(1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया। माँझी का प्रयास का मज़ाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने गहलौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया। हालांकि इन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है और इन्होंने इस पहाड़ के पत्थर भी बेचे फिर भी इनका ये प्रयास सराहनीय है। बाद में माँझी ने कहा," पहले-पहले गाँव वालों ने मुझपर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दे कर और औज़ार खरीदने में मेरी मदद कर सहायता भी की।
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