यह कैसी मजबूरी: यूपी में सिर्फ 3 फीट चौड़े सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं बच्चे





आज हम आपको 3 फीट के इस सबसे छोटे एक स्कूल (school of three feet) के बारे में बता रहे हैं. यह स्कूल यूपी (UP) के झांसी (Jhansi) में चलता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस स्कूल (School) में मैडम पढ़ाती भी हैं और बच्चे रोजाना पढ़ने भी आते हैं


झांंसी. यह कहानी है यूपी के झांसी ज़िले प्राथमिक विद्यालय, नझाई की. जहां बच्चे सिर्फ 3 फीट चौड़े सरकारी स्कूल में पढ़ने को मजबूर हैं. यह प्राइवेट नहीं बल्कि सरकारी स्कूल है. संभवत: यह देश का सबसे छोटा स्कूल होगा जहां सिर्फ इतनी सी जगह में टीचर भी बैठते हैं और बच्चे भी.  ‘सर्व शिक्षा अभियान’ (Sarva Shiksha Abhiyan)  के नारे के तहत सबको शिक्षा देने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं. फिर भी नौनिहालों की शिक्षा का इतना बुरा हाल है. इस स्कूल को मजबूरी कहें या फिर भारत का अजूबा (India's Wonder) किसी को समझ में नहीं आ रहा. मैडम खड़ी रहती हैं. उन्हें बैठने की जगह नहीं है. अब कैसे पढ़ते होंगे यह हमारे और आपके सोचने की बात है.

पढ़ाई-लिखाई के लिए यह स्कूल लगातार चल रहा है. अजूबा होने के चलते लोग इस स्कूल को देखने के लिए भी आते हैं. मजे की बात यह है कि बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी समय-समय पर इस स्कूल का निरीक्षण करने भी जाते हैं. यहां मिड-डे-मील (Mid Day Meal) भी बनता है. बच्चों को किताब और ड्रेस भी बांटी जाती है. वहीं आसपास रहने वाले लोगों को कहना है कि यह स्कूल क्या है एक गली सी है.

*एक दिन में छोटा नहीं हुआ है यह स्कूल*


स्कूल के पड़ोस में रहने वाले लोग बताते हैं कि यह स्कूल बीते 50 साल से चल रहा है. लेकिन पहले यह ऐसा नहीं था. इस बारे में जब बेसिक शिक्षा अधिकारी हरिवंश कुमार सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया, "यह स्कूल लीज पर था. अभी इसकी लीज का वक्त खत्म नहीं हुआ है. हम हर महीने इसका किराया दे रहे हैं. लेकिन स्कूल की बिल्डिंग जर्जर हो गई है. इसलिए छोटे बच्चे इस जगह गैलरी में बैठाए जाते हैं. बाकी के बच्चे पड़ोस के दूसरे स्कूल में शिफ्ट कर दिए गए हैं. स्कूल को खाली करना है या नहीं यह निर्णय विभाग में सचिव स्तर से होगा."

वजह जो भी हो लेकिन इसका खामियाजा वहां पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों को भुगतना पड़ रहा है. मौके पर पहुंचे रिपोर्टर को स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं ने बताया कि पानी पीने के लिए बाहर जाना पड़ता है. वहीं टॉयलेट न होने के चलते घर जाना पड़ता है.


*500 बच्चे पढ़ते थे इस स्कूल में*

छोटे से इस स्कूल में एक सहायक टीचर है तो एक शिक्षामित्र है. उन्होंने बताया कि स्कूल के जर्जर होने से पहले यहां करीब 500 बच्चे पढ़ते थे. लेकिन जब स्कूल गिरासू हो गया तो बच्चों की संख्या भी घट गई. अब स्कूल में 22 बच्चों का नामांकन है. जबकि आते सिर्फ 10 से 12 बच्चे ही हैं.

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