आरोप है कि सफाई ठेकेदार और अस्पताल प्रशासन की मिलीभगत से भ्रष्ट सफाई माफिया लाखों रुपये की सरकारी बजट डकार रहे हैं, जबकि सफाई नाम की चीज़ केवल फाइलों में मौजूद है।
मरीजों और उनके परिजनों ने भयानक आरोप लगाते हुए कहा — “यहाँ इंसानों की जिंदगी का कोई मूल्य नहीं, प्रशासन सिर्फ कमीशन खा रहा है।” उनका कहना है कि इस लापरवाही से संक्रमण, डेंगू, हैजा और यहां तक कि महामारी फैलने का खतरा है।
सूत्र बताते हैं कि सफाई का ठेका वर्षों से एक ही ठेकेदार के पास है, जिसे अफसरों का संरक्षण प्राप्त है। शिकायतें दर्ज होने के बाद भी न कार्रवाई होती है, न बदलाव। उल्टा शिकायत करने वालों को ही डराया-धमकाया जाता है।
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने साफ चेतावनी दी है
— “अगर 48 घंटे में अस्पताल से गंदगी और भ्रष्ट ठेकेदारों को बाहर नहीं किया गया, तो पूरा शहर जिला अस्पताल का घेराव करेगा और जिला प्रशासन को जवाब देना पड़ेगा।”
फिर भी, अस्पताल प्रबंधन की प्रतिक्रिया वही पुरानी घिसी-पिटी — “जांच होगी”। सवाल उठता है ।
— क्या यह जांच भी उसी तरह फाइलों में दफन हो जाएगी, जैसे पहले हुई तमाम जांचें?
समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए शामली, उत्तर प्रदेश से पत्रकार गुलवेज आलम की रिपोर्ट
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