उत्तराखंड सरकार ने रजिस्ट्री शुल्क में बड़ा बदलाव करते हुए इसे *25,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये* कर दिया है, जिसके बाद प्रदेश में संपत्ति की खरीद-फरोख्त अब और महंगी हो गई है। यह संशोधन लगभग **10 साल बाद** किया गया है और सरकार का दावा है कि इससे राज्य के राजस्व में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी। नए प्रावधानों के लागू होते ही बैनामा (Sale Deed), GPA, Agreement to Sale, Gift Deed सहित सभी प्रकार के संपत्ति-संबंधी दस्तावेजों के रजिस्ट्रेशन में दोगुना शुल्क देना होगा।
नए नियमों के तहत अब यदि किसी संपत्ति का मूल्य **12.5 लाख रुपये से अधिक** है, तो उसके लिए अधिकतम 50,000 रुपये का रजिस्ट्री शुल्क अनिवार्य है। पहले इसी स्थिति में लोगों को केवल 25,000 रुपये शुल्क देना होता था। भले ही रजिस्ट्री शुल्क संपत्ति के मूल्य पर **2 प्रतिशत** की दर से तय किया जाता है, लेकिन इस पर अधिकतम राशि की सीमा लागू रहती है—अब यह सीमा दोगुनी हो चुकी है।
राज्य में संपत्ति खरीदने वालों को इस बदलाव के बाद अतिरिक्त वित्तीय भार का सामना करना पड़ेगा। इससे जहां सरकार को राजस्व बढ़ाने में मदद मिलेगी, वहीं आम जनता, खासकर मध्यम वर्ग और छोटे मकान खरीदने वाले लोग, इस निर्णय से प्रभावित होंगे। रजिस्ट्री कार्यालयों में भी परिवर्तन को लेकर लोगों के बीच चर्चाएं तेज हो गई हैं और कई लोग अगले महीने से पहले रजिस्ट्री कराने में जुट गए हैं ताकि अतिरिक्त बोझ से बचा जा सके।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि बढ़ती आर्थिक जरूरतों और लंबे समय से चल रही कम शुल्क सीमा के कारण इस संशोधन की आवश्यकता पड़ी। हालांकि रियल एस्टेट सेक्टर से जुड़े लोगों का कहना है कि इससे संपत्ति की खरीदारी की रफ्तार धीमी हो सकती है। "समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए पत्रकार तसलीम अहमद की ख़ास रिपोर्ट
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