"ब्याजखोरों का आतंक: हंसते-खेलते परिवारों को तबाह करने वाला काला कारोबार"

आज देश के शहरों, महानगरों और गांवों तक ब्याजखोरों का जाल इतनी मजबूती से फैल चुका है कि उनका आतंक समाज की रगों में जहर की तरह घुल गया है। लोग जितना कर्ज लेते हैं, उससे कई गुना लौटाने के बाद भी ब्याज की अदायगी के बोझ से दबे रहते हैं।

ब्याज पर पैसे लेना और देना कोई नई बात नहीं, लेकिन जब यह एक निर्दयी मुनाफाखोरी के धंधे में बदल जाता है, तो इसका नतीजा हमेशा दर्दनाक ही होता है। इन सूदखोरों का मकसद किसी की मदद करना नहीं, बल्कि अपने धन को कई गुना बढ़ाना होता है। उनकी संवेदना का स्तर लगभग शून्य होता है।

कानून मौजूद, लेकिन असर नहीं
हैरानी की बात है कि तमाम कानूनी प्रावधान होने के बावजूद ब्याजखोरों का साम्राज्य पूरे देश में फैला है। कई क्षेत्रों में तो उनका नेटवर्क इतना मजबूत है कि पुलिस और प्रशासन भी उन तक पहुँचने का साहस नहीं कर पाते। मानो वे समानांतर व्यवस्था चला रहे हों।

गांव से महानगर तक फैला जाल
शहर हो या गांव — ब्याजखोरों की गैंग हर जगह सक्रिय है। कुछ क्षेत्रों में वे इतने सशक्त हो चुके हैं कि बिना व्यापक और संगठित अभियान चलाए उन्हें काबू में करना लगभग असंभव है। राहत की बात है कि सरकार अब सूदखोरों के खिलाफ बड़ा अभियान चलाने की तैयारी कर रही है।

गैर-पंजीकृत ब्याजखोर: कानून से परे
गैर-पंजीकृत ब्याजखोर न तो किसी सरकारी नियम को मानते हैं, न पुलिस-प्रशासन की पकड़ में आते हैं। ऐसे लोग खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ाते हैं, और उनकी वजह से कई हंसते-खेलते परिवार कर्ज के बोझ में टूट जाते हैं, यहां तक कि आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो जाते हैं।

जरूरी है गुप्त और सख्त कार्रवाई
सरकार को चाहिए कि ऐसे ब्याजखोरों के खिलाफ गुप्त तरीके से सख्त अभियान चलाया जाए। इस गंदगी को समाज से उखाड़ फेंकना न सिर्फ कानून और प्रशासन का कर्तव्य है, बल्कि यह लोगों की जान और सम्मान बचाने की भी ज़िम्मेदारी है।

📌 लेखक: ज़मीर आलम
समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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