कांवड़ यात्रा और अराजकता – श्रद्धा का यह कैसा स्वरूप?

रिपोर्ट: तसलीम अहमद, "समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका | संपर्क: 8010884848


भूमिका:

सावन का महीना आते ही उत्तर भारत की सड़कों पर भगवा रंग की चादर सी बिछ जाती है। लाखों श्रद्धालु हरिद्वार, गंगोत्री और अन्य तीर्थस्थलों से गंगाजल लेकर अपने गांव-शहरों को लौटते हैं, जिसे वे शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यह कांवड़ यात्रा, जो एक धार्मिक आस्था और तपस्या का प्रतीक मानी जाती है, आजकल कई बार अराजकता, हिंसा और डर का पर्याय बनती जा रही है।

इसी कड़ी में एक बेहद चिंताजनक घटना सामने आई है हरिद्वार के बहादराबाद क्षेत्र से, जिसने इस यात्रा की पवित्रता और शांति के भाव को कठघरे में खड़ा कर दिया है।


घटना का विवरण:

स्थान: बहादराबाद, जिला हरिद्वार, उत्तराखंड
तारीख: जुलाई 2025
पीड़ित: धर्मेंद्र (टेम्पो चालक)
रिपोर्टिंग पत्रकार: तसलीम अहमद

गुरुवार को बहादराबाद में उस वक्त अफरा-तफरी मच गई जब कुछ कांवड़ियों ने एक टेम्पो चालक को इस हद तक पीटा कि उसकी जान पर बन आई। वजह? उनका आरोप था कि टेम्पो से उनके गंगाजल का कलश खंडित हो गया।

टेम्पो चालक धर्मेंद्र किसी तरह अपनी जान बचाकर सड़क किनारे गिर पड़ा, लेकिन गुस्साए कांवड़ियों ने उसे बेरहमी से पीट दिया। स्थानीय लोगों ने हस्तक्षेप किया, तब जाकर मामला शांत हुआ। घायल धर्मेंद्र को गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसकी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।


प्रश्न उठते हैं:

इस घटना से कई गंभीर सवाल उभरकर सामने आते हैं:

  1. क्या धार्मिक आस्था का मतलब हिंसा है?

    क्या किसी कलश के गिर जाने या खंडित हो जाने से धर्म खतरे में पड़ जाता है? और अगर ऐसा होता है, तो क्या यह धर्म के नाम पर हिंसा का अधिकार दे देता है?

  2. कांवड़ यात्रा – साधना या शक्ति प्रदर्शन?
    जहां एक ओर लाखों शिवभक्त कांवड़ लेकर नंगे पांव यात्रा करते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ "कांवड़िया" बाइक, डीजे और लाठी-डंडों के साथ उत्पात मचाते हैं। यह किस रूप की भक्ति है?

  3. प्रशासन की भूमिका क्या है?
    क्या पुलिस और स्थानीय प्रशासन की निगरानी और रोकथाम के इंतज़ाम पर्याप्त हैं? क्या संवेदनशील क्षेत्रों में कांवड़ियों के समूहों की निगरानी के लिए प्रशिक्षित बल तैनात हैं?


जनता की पीड़ा:

हर साल यह देखा जाता है कि कांवड़ यात्रा के दौरान आम जनता को सड़क जाम, ध्वनि प्रदूषण, अस्थायी रास्ता अवरोध, दुकान बंद होने और कानून-व्यवस्था की समस्या का सामना करना पड़ता है। और यदि कोई विरोध करता है या गलती से श्रद्धालुओं से टकरा जाए, तो उसके साथ बर्बरता होती है — जैसा कि धर्मेंद्र के साथ हुआ।


श्रद्धा बनाम संवेदनशीलता:

श्रद्धा का मतलब सहनशीलता और विनम्रता होता है, न कि हिंसा और आक्रोश। गंगाजल शिव को अर्पण करने का कार्य तपस्या है, यह अहंकार और दंभ का नहीं। समाज को ऐसे मामलों में मिलकर सख्त कदम उठाने होंगे, ताकि आस्था के नाम पर किसी भी व्यक्ति के जीवन से खिलवाड़ न हो।


पत्रकार की अपील:

मैं, तसलीम अहमद, "समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के माध्यम से प्रशासन, समाज और धार्मिक नेताओं से आग्रह करता हूँ कि इस घटना को नजरअंदाज न करें। धर्मेंद्र को न्याय मिले, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो, और कांवड़ यात्रा को एक बार फिर संयम और सद्भाव का प्रतीक बनाया जाए।


समाप्ति पर विचार:

कांवड़ यात्रा भारत की आध्यात्मिक विविधता और संस्कृति का हिस्सा है। इसे बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है। लेकिन इसके नाम पर हो रही हिंसा यदि रोकी नहीं गई, तो यह यात्रा भी अपने मूल उद्देश्य से भटक जाएगी।

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यदि आप इस मुद्दे से सहमत हैं, तो इसे अधिक लोगों तक पहुंचाएं। और यदि आपके पास ऐसी कोई अन्य घटना की जानकारी हो, तो "समझो भारत" से संपर्क करें:
📞 8010884848



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