रिपोर्ट: नसीम अहमद, "समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका से
मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश):
भीम आर्मी के मुखिया और आज़ाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर आज़ाद एक बार फिर विवादों में आ गए हैं। मुजफ्फरनगर में आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान पत्रकारों से सवाल-जवाब के क्रम में चन्द्रशेखर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। खासकर तब जब "समझो भारत" के पत्रकार नसीम अहमद ने उनसे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान पर सवाल किया जिसमें सीएम ने हिंसा या तोड़फोड़ से हुए नुकसान की भरपाई “उकसाने वाले नेताओं” से वसूलने की बात कही थी।
पत्रकार ने सीधा सवाल किया —
“सीएम योगी कह रहे हैं कि जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई आपके खाते से की जाएगी। आप क्या कहेंगे?”
इस सवाल पर चन्द्रशेखर अपना आपा खो बैठे। जवाब देने के बजाय उन्होंने पत्रकार को धमकाने के लहजे में कहा —
“आप FIR करवाना चाहते हैं? नाम बताइए आपका। किस चैनल से हैं आप? मैं भी FIR करवा दूं?”
पत्रकार ने जब दोबारा सवाल दोहराया, तो चन्द्रशेखर ने उत्तेजित होकर आरोप लगाया कि पत्रकार “भड़काऊ पत्रकारिता” कर रहा है। उन्होंने कहा —
“आपको पत्रकारिता की तमीज़ होनी चाहिए। यह सवाल सरकार का बचाव कर रहा है। आप बीजेपी के एजेंडे पर काम कर रहे हैं।”
प्रेस वार्ता बनी तीखी बहस का मंच
प्रेस वार्ता का उद्देश्य था हाल ही में हुए सामाजिक घटनाक्रम और आज़ाद समाज पार्टी की भावी रणनीति पर बात करना, लेकिन माहौल तब बिगड़ गया जब कुछ पत्रकारों ने हालिया हिंसा और प्रदर्शन के संदर्भ में तीखे सवाल पूछे।
भीम आर्मी प्रमुख पहले तो शांत भाव से सवालों के जवाब देते दिखे, लेकिन जैसे ही मुख्यमंत्री के बयान का जिक्र आया, उनका स्वर बदल गया। उन्होंने न केवल सवाल को ‘राजनीतिक साजिश’ बताया, बल्कि पत्रकार पर ‘झूठा नैरेटिव’ फैलाने का आरोप भी लगाया।
पत्रकार संगठनों ने किया विरोध
घटना के कुछ ही घंटों बाद पत्रकार संघों और प्रेस क्लबों ने इस व्यवहार की निंदा की। उत्तर प्रदेश पत्रकार महासंघ के वरिष्ठ सदस्य का बयान आया —
“नेता अगर सवाल नहीं झेल सकते तो प्रेस वार्ता बुलाना ही छोड़ दें। पत्रकार को धमकाना लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है।”
चन्द्रशेखर का बचाव
चन्द्रशेखर समर्थकों ने सोशल मीडिया पर उनके पक्ष में अभियान चलाया। उनका कहना है कि पत्रकार जानबूझकर उकसाने वाले सवाल कर रहे थे ताकि विवाद पैदा किया जा सके।
भीम आर्मी की आईटी सेल ने एक पोस्ट में लिखा —
“हमारे नेता को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। मीडिया का एक वर्ग बीजेपी का प्रवक्ता बन गया है।”
निष्कर्ष
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर इस बहस को जन्म दिया है कि क्या राजनेताओं को आलोचनात्मक पत्रकारिता स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है? या क्या पत्रकारों को भी संवेदनशील मुद्दों पर सवाल पूछते समय ज़िम्मेदारी का पालन करना चाहिए?
फिलहाल मुजफ्फरनगर की यह घटना सोशल मीडिया, राजनीतिक गलियारों और पत्रकारिता जगत में चर्चा का विषय बनी हुई है।
लेखक परिचय:
नसीम अहमद, वरिष्ठ संवाददाता, "समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका से जुड़े हैं। आप सामाजिक, राजनीतिक और ज़मीनी मुद्दों पर रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते हैं।
अगर आप चाहें तो मैं इस ब्लॉग के लिए एक फेसबुक/व्हाट्सएप पोस्ट का छोटा संस्करण भी तैयार कर सकता हूँ।
No comments:
Post a Comment