कैराना। सोशल मीडिया पर एक एडिटेड वीडियो वायरल होता है, जिसमें सांसद इकरा हसन को बदनाम करने की साजिश की जाती है। वीडियो झूठा साबित होता है, लेकिन हकीकत की पटकथा इससे भी दिलचस्प बन जाती है।
जहां सांसद इकरा हसन ने संयम दिखाया और नाबालिग लड़कों को माफ कर इंसानियत की मिसाल दी — वहीं संगठन की एक महिला नेता रजिया बानो ने ‘सियासी बहादुरी’ का ऐसा तमाशा किया कि कानूनी मर्यादाएं भी शर्मा जाएं।
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'कान पकड़ एपिसोड' – सियासत का नया ट्रेलर!
रजिया बानो ने सार्वजनिक रूप से दो नाबालिग लड़कों को भीड़ के बीच कान पकड़कर माफी मंगवाई, खुद थप्पड़ जड़े, और फिर इस पूरे 'कार्यक्रम' की वीडियो बनवाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी — जैसे कोई वेब सीरीज़ का प्रोमो हो।
> जनता का सवाल – "अरे भई! गलती अगर थी भी, तो इंसाफ का ठेका क्या अब कैमरे वालों ने ले लिया?"
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इकरा हसन बनीं नायक, बानो का ‘न्याय शो’ बना विवाद
जहां सांसद इकरा हसन की छवि एक संवेदनशील और समझदार नेता के रूप में उभरी, वहीं रजिया बानो का यह ‘वीडियो-वीरता प्रदर्शन’ अब खुद उनके लिए बूमरैंग बनता दिख रहा है।
> एक स्थानीय नागरिक का बयान –
"इकरा हसन ने दिल जीता, बानो ने तमाशा किया!"
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लोकतंत्र या लिंचतंत्र?
ये मामला सिर्फ दो बच्चों की नहीं, पूरी व्यवस्था की बेइज्जती बन गया।
क्या अब हर संगठन अपने मंच लगा कर "वीडियो कोर्ट" चलाएगा?
और मासूम बच्चों को "क्लिपिंग कंटेंट" बना देगा?
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साजिश की पटकथा में 'अपने' ही शामिल?
जांच में सामने आया कि यह वायरल वीडियो समाजवादी पार्टी से जुड़े कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा ही फैलाया गया था। यानी साजिश घर की ही थी, और सफाई करने निकले लोग खुद कीचड़ ले आए।
> जनता पूछ रही है —
"बच्चों ने गलती की, माफ कर दिया जाता... लेकिन तुमने इंसाफ का मज़ाक क्यों बनाया?"
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बानो की 'बाहुबल शैली' पार्टी के गले की फांस
पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच भी फुसफुसाहट शुरू हो चुकी है।
> "सांसद जी तो इज्जत बचा रही हैं, लेकिन कुछ लोग पब्लिसिटी के चक्कर में पूरी पार्टी की लुटिया डुबो देंगे!"
अब जनता के साथ-साथ पार्टी में भी ये सवाल उठ रहा है —
"क्या रजिया बानो पर होगी कार्रवाई या फिर चुप्पी ही संगठन की नीति है?"
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निष्कर्ष – लोकतंत्र में तमाशा नहीं, सोच चाहिए
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप होते हैं, लेकिन बच्चों को चौराहे पर शर्मिंदा करना और उसे सोशल मीडिया पर वायरल करना —
ये न तो इंसाफ है, न बहादुरी... ये महज सस्ती लोकप्रियता की कोशिश है।
अब फैसला जनता के हाथ में है —
"हमें नेता चाहिए या 'लाइव सजा' देने वाले यूट्यूबर ?"
"समझो भारत" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका कैराना, शामली, उत्तर प्रदेश से पत्रकार गुलवेज आलम की रिपोर्ट
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