कैराना। कस्बे का सेंट आरसी स्कूल, जो शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र समझा जाता है, अब खुद को विवाद में घसीट चुका है। डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानाचार्य और शिक्षकों ने जूते पहनकर बाबा साहेब के चित्र पर फूलमाला अर्पित की, जिसका नतीजा पूरे कस्बे में रोष और निंदा के रूप में देखने को मिला है। यह अपमानजनक हरकत न केवल अंबेडकर जी की शिक्षाओं का अनादर है, बल्कि यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि स्कूल का स्टाफ किस हद तक अपनी ज़िम्मेदारियों से विमुख हो चुका है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर, आधुनिक भारत के निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रतीक, शिक्षा के प्रति अपने योगदान और प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि शिक्षा ही समाज में बदलाव ला सकती है। अंबेडकर ने कहा था, “शिक्षा का अधिकार होना हर व्यक्ति का है,” लेकिन जब एक शिक्षण संस्थान के तकनीकी और शैक्षणिक नेता ही इस सोच से विमुख होंगे, तो सवाल उठता है कि क्या हम अपने बच्चों को सही नैतिकता और मूल्यों का पाठ पढ़ा पा रहे हैं?
स्कूल के प्रधानाचार्य की भूमिका पर उठ रहे सवाल गंभीर हैं। जब वह खुद इस प्रकार की असंवेदनशीलता दिखाएंगे, तो क्या बच्चों को शिक्षा का महत्व समझाया जा सकेगा? शिक्षकों का यह अपमानजनक व्यवहार शिक्षा के मंदिर में ऐसा घातक संकेत है, जो बच्चों को सिखाएगा कि शिक्षा केवल एक औपचारिकता है, न कि सम्मान और नैतिकता का माध्यम।
कस्बे के लोगों में इस घटना को लेकर गहरा आक्रोश है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह घटना न केवल अपमानजनक है, बल्कि यह विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा पर भी सवाल उठाती है। जब एक शिक्षण संस्थान, जहाँ पर शिक्षा और संस्कार का संचार होना चाहिए, खुद इस तरह के अभद्र व्यवहार का शिकार होगा, तब वहां की शिक्षा प्रणाली पर कैसे विश्वास किया जा सकता है?
सोशल मीडिया पर भी इस मामले को लेकर व्यापक चर्चा हो रही है। लोग इस घटना की घोर निंदा कर रहे हैं और स्कूल प्रशासन से जवाब मांगा जा रहा है। क्या सेंट आरसी स्कूल अपने स्टाप की इस अनुशासनहीनता को नजरअंदाज कर सकता है? क्या किसी स्कूल का इस तरह की हरकत करना, वहां बच्चों के लिए सुरक्षित और संवेदनशील माहौल तैयार कर सकता है?
शिक्षा के महत्व के साथ-साथ समाज में सम्मान और मूल्य प्रणाली को विकसित करने की बात करें, तो इससे बड़ा उदाहरण शायद ही मिलेगा। अंबेडकर जी ने अपने जीवन में हमेशा इसे महत्वपूर्ण माना और समाज में व्याप्त असमानताओं को खत्म करने के लिए शिक्षित करने का आह्वान किया। यदि शिक्षक ही इस प्रकार की हरकत करें, तो सवाल है कि वह छात्रों में किस प्रकार की विचारधारा का निर्माण करेंगे?
विद्यालय पर उठ रहे सवालों का जवाब अब केवल प्रशासन नहीं, बल्कि समाज को भी ढूंढना होगा। क्या सेंट आरसी स्कूल को इस घटना के बाद अपने अध्यापकों के आचरण पर गंभीर विचार नहीं करना चाहिए? यदि ऐसा नहीं हुआ, तो निश्चित ही यह न केवल स्कूल की बल्कि समाज की भी दिक्कत बनेगा।
जवाबदेही और नैतिकता की बड़ी बातें करने वाले शिक्षा के इस मंदिर में यदि प्रधानाचार्य और शिक्षकों का यही रवैया जारी रहा, तो भविष्य में इस स्कूल की विश्वसनीयता को बड़ा खतरा हो सकता है। समाज को एकजुट होकर यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बच्चों को शिक्षा और सम्मान के सही मायने समझाए जाएं, ताकि वे आगे चलकर अंबेडकर जी के विचारों और दृष्टिकोण को सच्चे अर्थों में समझ सकें।
इस शर्मनाक घटना ने केवल सेंट आरसी स्कूल को ही नहीं, बल्कि समूचे शिक्षा तंत्र को एक बार फिर से सवालों के कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। अब यह आवश्यक हो गया है कि स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग इस मामले में गंभीरता से कदम उठाए। क्या वे इस घटना के प्रति अपनी चुप्पी साधे रहेंगे, या सच्चाई को सामने लाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाएंगे?
शिक्षा का मतलब केवल किताबों का ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों का बोध कराना भी है। जब तक शिक्षकों का आचरण उचित नहीं होगा, तब तक ये मूल्य कैसे बच्चों में विकसित होंगे? अंबेडकर जी ने शिक्षा को सामाजिक बदलाव का सबसे अहम औजार माना था, लेकिन सेंट आरसी स्कूल के इस शर्मनाक कृत्य ने इस विचार को चुनौती दी है।
वर्तमान में यह बहस का विषय बन गया है कि क्या इस स्कूल को अपने पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को शामिल करने की आवश्यकता नहीं है। क्या यह सही नहीं होगा कि स्कूल अपने बच्चों को एक ऐसा पाठ पढ़ाए, जिसमें वे केवल शैक्षणिक ज्ञान ही न प्राप्त करें, बल्कि समाज में सम्मान, संवेदनशीलता और अंबेडकर जी के विचारों की भी समझ विकसित करें?
आगे बढ़ने के लिए, स्कूल को चाहिए कि वह इस घटना को एक सीख के रूप में ले, और अपने शिक्षकों को यह स्पष्ट करे कि किसी भी संस्था के लिए नैतिकता और सम्मान सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। यदि स्कूल यह सुनिश्चित नहीं कर सका कि उनके अध्यापक अपने कार्यों में संवेदनशील रहें, तो उनकी छवि और आगे की दिशा दोनों ही प्रभावित होंगी।
कैराना के लोग अब एक आवाज़ में यह मांग कर रहे हैं कि इस घटना की उचित जांच की जाए, और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। शिक्षा के इस मंदिर को अपने आधार को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि यह केवल ज्ञान का केंद्र न रहे, बल्कि सम्मान और नैतिकता का अधिकारिक पथ भी प्रशस्त करे।
आखिरकार, जब समाज शिक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझेगा, तभी अंबेडकर जी के सपनों को साकार किया जा सकेगा। यह समय है जब हमें अपने बच्चों को सही दिशा दिखानी होगी। सेंट आरसी स्कूल को न केवल इस शर्मनाक घटना से बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए, बल्कि इसे सुधारने का एक अवसर भी मानना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो निश्चित रूप से यह स्कूल समय के साथ अपनी पहचान खो देगा और समाज में एक नकारात्मक छवि के रूप में ही जाना जाएगा। रिपोर्ट गुलवेज आलम
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