अब मैं और मेरा परिवार में जी रहा इंसान केवल और केवल मैं की ओर ही बढ़ता नजर आ रहा है। मतलब साफ तौर पर देखा जाता है कि वर्तमान में अधिकांश युवा वर्ग मोबाइल की दुनिया अर्थात डिजिटल लाइफ में जी रहा है।

 


*मां-बाप भाई बहन में जहां प्यार होता है।*

*परिवार में हर दिन वहां त्योहार होता है।*

प्रेम चन्द वर्मा की कलम से

     परिवार के साथ खुशी या गम का अंदाज कुछ और ही होता है। परिवार से बढ़कर सारा जहान भी नहीं होता। परिवार निजी हो या संयुक्त वह बात अलग है। मोबाइल का साथ बढ़ने से व्यक्ति निजी तौर पर ही केंद्रित होता जा रहा है। पारिवारिक सदस्य का रूठना और मनाना तो वर्तमान में लगभग बंद सा हो गया है। या यूं कहें कि खुशी हो या गम जिनमें किसी पारिवारिक सदस्य का शामिल होना या ना होना कोई मायने नहीं रखता। शायद इसी सोच पर वर्तमान परिवेश में निजी मस्ती में आदमी गुम होता जा रहा है।


     वसुधैव कुटुंबकम के ध्येय के साथ इंसान के जीने का मकसद बहुत बड़ा हो जाता है। सरलता में हम समझे तो इसका मतलब है कि इस पृथ्वी पर जितना भी जन मानस है वह हमारा ही परिवार है। लेकिन इसे तो छोड़िए अब हम संयुक्त परिवार को भी खोते जा रहे हैं। जो बेहद चिंतनीय है। अब मैं और मेरा परिवार में जी रहा इंसान केवल और केवल मैं की ओर ही बढ़ता नजर आ रहा है। मतलब साफ तौर पर देखा जाता है कि वर्तमान में अधिकांश युवा वर्ग मोबाइल की दुनिया अर्थात डिजिटल लाइफ में जी रहा है। शायद इसका दुष्परिणाम ही युवा वर्ग में सुसाइड का बढ़ता चलन है। जो परिवार के मुखिया एवं समाज के उन तमाम चिंतकों के लिए चिंतन का विषय होना चाहिए।


    रुड़की कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर विशाल शर्मा कहते हैं

मां-बाप भाई बहन में जहां प्यार होता है।

परिवार में हर दिन वहां त्योहार होता है।

रंज होता न भारी, संग परिवार होता है।

खुशियां हों न्यारी, दिलों में प्यार होता है।

     कस्बा झिंझाना निवासी पूर्व प्रधानाचार्य महेंद्र कुमार शर्मा के बेटे डॉ विशाल शर्मा ( असिस्टेंट प्रोफेसर रुड़की ) परिवार के सदस्यों को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि परिवार में पिता अगर गलतियों पर डांटते हैं तो अपने जीवन की खुशियां परिवार में बांट देते हैं। जबकि मां अपने बच्चे की सभी मुश्किल दूर करती है और परिवार की खुशहाली के लिए हमेशा समर्पित रहती है। भाई हाथ पकड़ कर राह दिखाता हैं और बहन के लिए वे लिखते हैं,


बहन हर किसी के घर की वह जान होती है।

मां बाप भाई के चेहरे की वह मुस्कान होती है।

मेरे लिए वह सब से तकरार करती है।

सबसे ज्यादा भाई से वह प्यार करती है।

   कस्बा निवासी श्रीमती मधु रानी वर्मा कहती हैं कि संयुक्त परिवार के साथ खाना खाने का , त्यौहार मनाने का आनंद और महत्व अलग ही होता है। सभी परिजनों के बीच हर त्योहार और खुशी कई गुना बढ़ जाती है। वही तमाम समस्याओं का निराकरण भी सरलता से हो जाता है। श्रीमती अनीता शर्मा कहती हैं कि परिवार के बीच रहन-सहन से सभ्यता और संस्कार बच्चों को सरलता से जहन में समझ आ जाते हैं। श्रीमती मुनेश वर्मा कहती हैं कि संयुक्त परिवार गृहस्थ जीवन का सबसे जटिल संघर्ष पूर्ण हिस्सा होता है। जो हर उतार चढ़ाव के बीच इंसान को आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

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