जब हरी टोपी देख कांपने लगती थीं सरकारें


सूबे के जनपद मुजफ्फरनगर के गांव सिसौली में छह अक्टूबर 1935 को जन्मे एवं सभी धर्मों और जातियों के किसानों के दिलों पर राज करने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के जीवन पर किसान मसीहा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विचारधारा की अमिट छाप थी। राष्ट्रीय लोकदल के संगठन महामंत्री डॉ. राजकुमार सांगवान बताते हैं कि चौधरी साहब के जीवन और संघर्षों से प्रेरणा लेकर बाबा टिकैत अराजनीतिक संगठन के रूप में 17 अक्तूबर 1986 को अस्तित्व में आई भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर मनोनीत हुए। 


उन्होंने किसानों की मुख्य मांग बिजली, सिंचाई व फसलों के दाम की मांगों को जोरों से उठाना शुरू कर दिया। बाबा टिकैत ने गांवों में रहने वाले खेत-खलिहानों में लगे राजनीति से दूर किसान वर्ग को ताकत का अहसास कराया। उनका यह अभ्यास इतना मजबूत साबित हुआ कि सरकारें हरी टोपी देख कांपने लगती थीं। प्रशासन हाथ जोड़े टिकैत के योद्धाओं के सामने गिड़गिड़ाने लगता था। यही वह अवसर था जब टिकैत ने आंदोलनों के माध्यम से प्रदेश एवं देश की सरकार को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। यह स्थिति इतनी प्रबल होकर उभरी थी कि किसान और खेतिहर मजदूरों का शोषण नहीं हो सका था। बाबा टिकैत ने उत्तर प्रदेश समेत देश के विभिन्न राज्यों में फसलों के उचित दाम, सिंचाई की पूर्ण व्यवस्था का लाभ किसानों को दिलाया।

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