आरटीआइ कानून को कुछ लोगों ने बनाया अपना कमाई का हथियार



*डेढ़ दर्शक पहले आरटीआइ एक्ट लागू होने से सत्ता और प्रशासन की क्या कामकाज में बनी पारदर्शिता!!*


*कई बार ब्लैक मेल आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हो चुकी हैं हत्या!*

*तस्लीम बेनकाब*

करीब डेढ़ दशक पहले जब सूचना का अधिकार कानून यानी आरटीआइ एक्ट लागू हुआ, तब उम्मीद की गई थी कि सत्ता और प्रशासन के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए यह एक बड़ा और कारगर औजार बनेगा। काफी हद तक इसका असर इसी रूप में सामने आया है और आज भी इस कानून के सहारे अलग-अलग महकमों से जुड़ी जनहित की जानकारियां सामने लाई जा रही हैं। यह जनकल्याण के कार्यक्रमों पर कारगर अमल और लोकतंत्र को मजबूत करने के मामले में एक ठोस कानून साबित हुआ है। लेकिन इसके समांतर यह भी सच है कि इस कानून को कुछ लोगों ने कई बार हथियार बना कर भी इस्तेमाल किया। यह भी देखा गया कि आरटीआइ के जरिए निकाली गई किसी सूचना की धौंस देकर संबंधित व्यक्ति के सामने मनमानी मांगें रखी गर्इं, किसी गोपनीय जानकारी को सार्वजनिक कर देने की आपराधिक धमकी दी गई और एक ब्लैकमेल किया। हालांकि इस तरह के मामले आम नहीं रहे, फिर भी अगर किसी शक्ल में आरटीआइ एक्ट को कोई व्यक्ति अपना स्वार्थ साधने का जरिया बनाता है तो यह न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि इस कानून के बुनियादी स्वरूप का भी बेजा इस्तेमाल है।
शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआइ का दुरुपयोग रोकने और इसके माध्यम से ‘आपराधिक धमकी’ पर रोक लगाने के लिए एक मुकम्मल दिशानिर्देश बनाने की जरूरत पर जोर दिया है। इस मसले पर दायर एक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि कुछ लोग आरटीआइ दाखिल करने के विषय से किसी तरह संबंधित नहीं होते; यह कई बार आपराधिक धमकी की तरह होता है, जिसे ब्लैकमेल करना भी कहा जा सकता है। ऐसी खबरें भी आर्इं कि आरटीआइ के तहत सवालों का जवाब देने की वजह से किसी विभाग के सामान्य कामकाज में बाधा आई। ऐसी स्थिति में निश्चित रूप से अदालत की चिंता वाजिब है और ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए एक प्रभावी प्रणाली बनाई जानी चाहिए। एक बेहद उपयोगी कानून का गलत मंशा से किया गया इस्तेमाल आखिरकार इसके बुनियादी मूल्यों को खत्म कर देगा। अगर यह प्रवृत्ति सामने आती है तो इस पर रोक के लिए ठोस दिशानिर्देश बनाए जाने चाहिए। लेकिन इसके साथ-साथ यह भी ध्यान रखे जाने की जरूरत है कि अपने लागू होने के बाद से ही इस कानून ने शासकीय कामकाज में पारदर्शिता लाने में जितने बड़े मददगार की भूमिका निभाई है, उसकी वह अहमियत बरकरार रहे।
यह किसी से छिपा नहीं है कि आरटीआइ कानून के लागू होने के पहले समूचा सत्ता-तंत्र जनता की सामान्य पहुंच से एक तरह से बाहर था और किसी काम के बारे में जानकारी प्राप्त करना लगभग असंभव था। इसका नतीजा यह हुआ कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता का अभाव एक चरित्र बन गया और इसका नुकसान लगभग हर स्तर पर देश की जनता और जनहित के व्यापक सरोकार को हुआ। लेकिन इस कानून के आने के बाद लोगों को एक सीमित सहारा मिला और इसके जरिए वे संबंधित जानकारी पाने के अधिकार से लैस हुए। इससे इस कानून की अहमियत ही साबित होती है। ऐसे में अगर सूचनाधिकार कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाने का एक तंत्र बन जाए तो इसकी उपयोगिता एक साबित हकीकत है। हालांकि यह भी सच है कि इसके दुरुपयोग के कुछ मामले सामने आए, जो अक्सर चिंता की वजह बने। इसके बरक्स इसके उपयोग से जरूरी जानकारियां जनता के सामने लाने वाले कई आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या भी हुई। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि जानकारी से लैस समाज ही जागरूक हो सकता है और आखिरकार यह देश को मजबूत करने का जरिया बनता है।

No comments:

Post a Comment