शामली में जीएसटी की दबिश या सौदेबाज़ी? तांबा फैक्ट्री में घंटों बंद दरवाजों के पीछे बैठी सहारनपुर टीम, कार्रवाई से ज्यादा उठे सवाल

शामली। कैराना रोड स्थित एक तांबा फैक्ट्री पर  सहारनपुर मंडल की जीएसटी टीम की दबिश ने पूरे इलाके में हलचल मचा दी। लेकिन यह कार्रवाई जितनी रहस्यमयी रही, उतनी ही विवादों में भी घिर गई। दरअसल, तीन-चार गाड़ियों के काफिले के साथ पहुंचे अधिकारी फैक्ट्री के अंदर घुसे और तुरंत दरवाजे बंद कर दिए। बाहर खड़े कर्मचारी और आसपास के लोग सकते में आ गए। फैक्ट्री मालिक ने हड़बड़ी में कर्मचारियों को कागज़ समेटने के निर्देश दिए और उसके बाद घंटों तक फैक्ट्री के भीतर रहस्यमयी बैठकों का दौर चलता रहा।

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि बाहर इंतजार कर रही मीडिया को न तो कोई जानकारी दी गई और न ही किसी अधिकारी ने कैमरे पर बोलना जरूरी समझा। सवाल पूछे जाने पर अफसर साफ भाग खड़े हुए और ऑफ रिकॉर्ड केवल इतना कहकर पल्ला झाड़ लिया— “जनरल वेरीफिकेशन”। लेकिन सवाल यह है कि अगर सब कुछ सामान्य था तो दरवाजे बंद करके घंटों तक अंदर आखिर चल क्या रहा था? जनता से पारदर्शिता क्यों छुपाई गई?

यह कोई पहली घटना नहीं है। ठीक इसी तरह पिछले महीने भी यही सहारनपुर टीम शामली की एक गैस एजेंसी पर दबिश डाल चुकी है। उस वक्त भी अफसर कैमरों से भागते नजर आए थे और जनता को जांच के नाम पर कुछ भी बताने से बचते रहे थे। बार-बार की यही हरकत अब विभाग की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है।

स्थानीय व्यापारियों ने भी खुलकर विभाग पर हमला बोला है। उनका कहना है कि जीएसटी टीमों की दबिश केवल डराने और सौदेबाज़ी करने का खेल है। असली गड़बड़ियां कभी उजागर नहीं होतीं। छोटे कारोबारी तो इन कार्रवाइयों से खौफजदा रहते हैं, लेकिन बड़े व्यापारियों को बचा लिया जाता है। लोगों ने साफ आरोप लगाया कि यह जांच नहीं बल्कि सेटिंग है, वरना पारदर्शिता से क्यों भागा जा रहा है? एक व्यापारी ने तंज कसते हुए कहा— “जब सच होता है तो उसे छुपाया नहीं जाता, लेकिन जीएसटी टीम का पूरा रवैया ही संदेह पैदा कर रहा है।”

जिलास्तरीय अधिकारियों की गैरहाज़िरी और मंडल स्तरीय टीम का रहस्यमयी रवैया अब पूरे विभाग की साख पर सवाल खड़े कर रहा है। जनता पूछ रही है कि आखिर ये दबिशें जांच हैं या फिर सौदेबाज़ी का खेल? कार्रवाई से ज़्यादा शक पैदा होना अपने आप में विभाग की किरकिरी है। सच यही है कि जब तक छापेमारी खुले तौर पर और पारदर्शी तरीके से नहीं होगी, तब तक जीएसटी विभाग की हर दबिश पर शक रहेगा और लोग यह कहने से पीछे नहीं हटेंगे कि “यह छापा नहीं, सेटिंग थी। समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के लिए शामली, उत्तर प्रदेश से पत्रकार ज़मीर आलम की खास रिपोर्ट 
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