मुशायरे का आग़ाज़ विधायक पंकज मलिक, डा. अब्दुर्रज्जाक बाबा चौधरी, काजी नोमान मसूद गंगोह तथा मेला कमेटी के जिम्मेदार लोगों ने फीता काटकर और शमा रोशन कर किया।
🎤 शायरों की नज़्मों पर गूंजा "वाह-वाह"
कार्यक्रम का संचालन नदीम फर्रुख ने किया और अध्यक्षता सफदर अल्वी ने की।
देशभर से आए नामचीन शायरों ने अपनी ग़ज़लों और नज़्मों से श्रोताओं को पूरी रात बांधे रखा।
नदीम फर्रुख ने कहा –
"रोशनी का कुछ न कुछ इम्कान होना चाहिए,
बंद कमरे में भी रोशनदान होना चाहिए।
हिंदू-मुस्लिम आपके माथे पर चाहे जो भी हो,
आपके सीने में हिंदुस्तान होना चाहिए।"
महिला शायर महक करानवी ने अपने अशआर से सभी को प्रभावित किया –
"हक उसका खा लिया कभी इसका खा लिया,
दुनिया ने किस तरह का रवैया बना लिया।
पहले हसीन चेहरे से खाए बहुत फरेब,
फिर मैंने एहतियात का चश्मा लगा लिया।"
🌙 शायरों ने पेश किया जज़्बा और मोहब्बत का पैग़ाम
- वसीम झिंझानवी ने पढ़ा – “हम तो मर के भी नहीं जाएंगे हिन्दुस्तान से।”
- इमरान ने कहा – “इलाही उसके कद को मेरे कद से भी बड़ा कर दे, जिसे मेरी तरक्की से जलन महसूस होती है।”
- खुर्शिद हैदर मुजफ्फरनगरी ने सुनाया – “खुशियों के तराने में जरा देर लगेगी, रूठे हैं मनाने में जरा देर लगेगी।”
- हाशिम फिरोज़ाबादी ने कहा – “और क्या चाहिए जान-ओ-तन के लिए, जान दे देंगे हम इस वतन के लिए।”
- हिमांशी बावरा ने दिल छू लेने वाले अल्फ़ाज़ पेश किए – “दिल ऐसे मुब्तिला हुआ है तेरे मलाल में, जुल्फ़े सफ़ेद हो गई उन्नीस साल में।”
- बिलाल सहारनपुरी ने कहा – “पहले हर आदमी इंसान हुआ करता था, बाद में हिंदू-मुसलमान हुआ करता था।”
इनके अलावा मंजर भोपाली, सिकंदर हयात गड़बड़ रुड़की और अन्य शायरों ने भी अपने बेहतरीन कलाम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
🙏 मेहमानों का सम्मान और आभार
कार्यक्रम में दरगाह के सज्जादानशीं हाजी अमजद अली, सफदर अली और बाबर कुद्दूसी ने आए हुए मेहमानों का स्वागत करते हुए आभार व्यक्त किया।
इस मौके पर खुर्शीद आलम, काजी शान मियां, विनोद संघल, शुजा मियां, हम्ज़ा अली, नादिर सिद्दीकी समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
📌 रिपोर्ट: झिंझाना (उत्तर प्रदेश) से पत्रकार शाकिर अली
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