ज़मीर आलम, वरिष्ठ पत्रकार
समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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आज नोएडा के एक न्यूज़ चैनल स्टूडियो में वो नज़ारा देखने को मिला जिसे बहुत से लोगों ने बरसों से महसूस किया, लेकिन किसी ने सामने नहीं दिखाया था।
खुद को ‘मौलाना’ कहने वाला और असल में 5 हजारी बना फिरता साजिद रशीदी, जिसे आज सपा समर्थक ने लाइव डिबेट के बाद एक करारा थप्पड़ जड़ दिया। यह वही शख्स है जो बरसों से टीवी चैनलों पर इस्लाम की तालीमात को तोड़-मरोड़कर पेश करता आ रहा है, ताकि अपनी तथाकथित भाजपाई वफादारी का प्रमाण दे सके।
साजिद रशीदी उन नाम निहाद मौलानाओं में से है जो हर मुद्दे को मुसलमानों के खिलाफ मोड़ने का पेशेवर हुनर रखते हैं। हर बार जब भी देश में कोई संवेदनशील मुद्दा उठता है, तो यह व्यक्ति ज़हरीले बयान देकर मुसलमानों को कटघरे में खड़ा करता है और माहौल को जानबूझकर जहरीला बनाता है।मगर आज, जब उसे उसी ज़हर का पहला घूँट मिला, तो सन्नाटा पसर गया। लोगों को लगा जैसे किसी ने देर से ही सही, मगर सही समय पर जवाब दिया हो।
ये सिर्फ थप्पड़ नहीं था —
ये उस पूरे समुदाय की भावनाओं का इज़हार था जो सालों से ऐसे नकली मौलवियों की वजह से बदनाम होते आ रहे हैं। यह थप्पड़ उन सभी सच्चे मुसलमानों की ओर से था जो इस्लाम की सही तस्वीर पेश करना चाहते हैं, मगर साजिद रशीदी जैसे लोग उसे बिगाड़ते रहते हैं।कुछ जरूरी बातें:
- पहली बात, ऐसे व्यक्ति को “मौलाना” कहना बंद करिए।
- दूसरी बात, ये लोग चंद पैसों के लिए स्टूडियो में जाकर अपने ही समाज के खिलाफ ज़हर उगलते हैं।
- तीसरी बात, अगर यह थप्पड़ नहीं होता तो शायद यह सिलसिला और लंबा खिंचता।
- चौथी बात, मीडिया चैनलों को भी आत्मचिंतन करने की जरूरत है कि आखिर वो क्यों बार-बार ऐसे भड़काऊ चेहरों को मंच देते हैं?
अब समय आ गया है कि नफ़रत फैलाने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए, चाहे वो किसी भी जाति, मज़हब या राजनीतिक झंडे के नीचे क्यों न खड़े हों। साजिद रशीदी जैसे लोगों को बहस नहीं, बहिष्कार चाहिए। इस थप्पड़ ने सिर्फ एक चेहरे को नहीं, एक पूरी सोच को चुनौती दी है।
समझो भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका इससे जुड़े हर नागरिक की आवाज़ बनेगा।
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