शामली। आज भगवान परशुराम की जयन्ती पर "उत्तर प्रदेश साहित्य सभा लखनऊ शाखा शामली" द्वारा जनपद के सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि प्रदीप शर्मा की स्मृति में एक काव्य गोष्ठी के साथ मनाई गई। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भारत के सुविख्यात कवि एवं साहित्यकार मुजफ्फरनगर से पधारे डॉक्टर मुकेश कुमार दर्पण को उनकी उत्कृष्ट प्रस्तुतियों पर " हास्य कवि प्रदीप शर्मा सम्मान " से नवाजा गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जनपद शामली के वरिष्ठ मंच संचालक सरदार मंजीत सिंह गाजियाबादी, संयोजन हास्य व्यंग्य कवि अनिल पोपट कामचोर रहे। मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक संचालन राष्ट्रीय चेतनायुक्त ओजस्वी कवि प्रीतम सिंह प्रीतम ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती एवं भगवान परशुराम के पावन चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलन और 'रेखा चौहान 'राज 'द्वारा मधुर कण्ठ के साथ प्रस्तुत की गई सरस्वती वन्दना से हुआ। डॉक्टर मुकेश दर्पण ने एक से बढ़कर एक रचनायें सुनाकर खूब तालियाँ बटोरी। उन्होंने अपने काव्यपाठ में कहा-
"कम से कम इतना तो मेरे यार होना चाहिए। नफरतों में भी जरा सा प्यार होना चाहिए।।" सुप्रसिद्ध तेवरीकार पवन कुमार पवन ने मां सरस्वती के सम्मुख अपनी मांग रखते हुए कहा-
सिर्फ सच और सच को ही सम्मान दे।।" नेशनल दूरदर्शन पर अपना बेहतरीन काव्यपाठ करके लौटे, राधे रत्न एवार्ड से सम्मानित प्रदीप मायूस ने पहलगाम घटना से आहत होकर अपनी काव्यात्मक प्रतिक्रिया देते हुए कहा-"बस एक यही बात है सबकी जुबान पर।
भारत का नाम लिख देंगे, हम आसमान पर।।
आँख निकाल लें और खेलेंगे गोटियां, कोई नजर उठाए तो, हिन्दोस्तान पर।।"
सरदार मंजीत सिंह गाजियाबादी के लतीफों ने भी अच्छा रंग जमाया। उन्होंने कई सामाजिक रचनायें भी सुनाई-
"उसने मेरी तस्वीर को छाती से लगा रखा है। गैर हूँ फिर भी मुझे अपना बना रखा है।।"
राष्ट्रीय चेतनायुक्त ओजस्वी कवि प्रीतम सिंह प्रीतम ने राष्ट्र भक्ति के छन्द और बालश्रम पर एक मार्मिक रचना प्रस्तुत की-
देश के देश भक्त रचनाकार अरुण शर्मा ने आतंकवाद से जूझ रहे देश की विडम्बनाओं पर दृष्टिपात करते हुए कहा-
"लेनी हैं कुछ खुशियाँ मुझको,
कितना खर्चा हो सकता है?"
"चर्बी हटाए, मोटापा घटाए ।
दमा, एलर्जी, गठिया बाए ।।
कद्दू से चेहरे कमल से खिले । नाले की पटरी पर मिले ।।"
हिन्दी साहित्य के मर्मज्ञ कवि पण्डित राजीव भावग्य ने अपनी रचनाओं के माध्यम से कलुषित राजनीति पर प्रहार करते हुए कहा-
हिन्दी-संस्कृत के सुप्रसिद्ध साहित्यकार रमेश चंद्रा ने सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्यकार प्रदीप शर्मा को खूब याद किया-
"आज उनकी याद रोना अच्छा लगता है"
साहित्यिक अभिरुचि के कवि सुधीर जगधर ने व्यंग्यात्मक दोहे सुनाकर सबको मोह लिया-
सुमधुर वाणी की धनी कवयित्री रेखा चौहान 'राज ' अपनी चिरपरिचित शैली में कई गीत सुनाकर सामाजिक समन्वय को बल दिया-
"दिल को छूकर दर्द से भर दिया है सनम, याद तेरी ही कायम, इतना दिया है गम ।।"
हिन्दी-उर्दू के नामचीन कवि बृजेश कुमार चितेरा ने सुनाया-
"खामोश लब हैं,नजर बोलती है। ये तेरे प्यार का असर बोलती है ।।" इनके अतिरिक्त शिवम सम्राट सनातनी,निशान्त शर्मा,श्रीकान्त कौशिक, अवनी और अनन्या ने भी काव्यपाठ किया ।डॉक्टर अमजद खान, पपीन्द्र, मनु, हर्षित, शगुन आदि उपस्थित रहे। रिपोर्टर शौकीन सिद्दीकी/रामकुमार चौहान शामली
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